Bhojan mantra in sanskrit | भोजन मंत्र

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भोजन मंत्र , Bhojan mantra

Bhojan mantra | भोजन मंत्र

दोस्तों आज हमने आपके सामने 4-5 प्रकार के भोजन मंत्र दिए हैं। भोजन मंत्र को इस तरीके से पढ़ना है या इसे क्यों पढ़ा जाता है यह सभी जानकारी आपको इस पोस्ट में मिलेगी। तो आइये जानते है भोजन ग्रहण करने से पूर्व बोले जाने वाले मंत्र के विषय में: –

अन्नपूर्णे सदा पूर्णे शंकरप्राणवल्लभे!।
ज्ञान वैराग्य-शिद्ध्‌यर्थं भिक्षां देहिं च पार्वति॥11॥

Annapurne sada purne shankr pranavallabhe |
gyan veragya shiddhayartham bhiksham dehi cha parvati ‖ 11 ‖

अर्थ:- हे अन्नपूर्णे! तुम्हीं सर्वदा पूर्ण रूप से हो, तुम्हीं महादेव की प्राणों के समान प्रियपत्नी हो। हे पार्वति! तुम्हीं ज्ञान और वैराग्य की सिद्धि के निमित्त भिक्षा प्रदान करो, जिसके द्वारा मैं संसार से प्रीति त्याग कर मुक्ति प्राप्त कर सकूं, मुझको यही भिक्षा प्रदान करो।

Meaning:- O Mother Annapoorna, You Who are always Full (with the gift of Food and Blessings), You Who are the Beloved of Shankara, O Mother Parvati, Please grant me the Alms of Your Grace, to awaken within me Spiritual Knowledge and Freedom from all Worldly Desires.

माता च पार्वती देवी पिता देवो महेश्वरः।
बान्धवाः शिव भक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम्‌॥ 12

mata cha parvati devi pita devo maheshvara |
bandhavah shiv bhaktashcha svadesho bhuvnatrayam ॥ 12 ॥

अर्थ:- हे जननि! पार्वती देवी मेरी माता, देवाधिदेव महेश्वर मेरे पिता शिव भक्त गण मेरे बांधव और तीनों भुवन मेरा स्वदेश है। इस प्रकार का ज्ञान सदा मेरे मन में विद्यमान रहे, यही प्रार्थना है।

Meaning:- My Mother is Devi Parvati, and my Father is Deva Maheswara (Shiva), My Friends are the devotees of Shiva, and my Country is all the Three Worlds (Whose Lord is Shiva-Parvati)


ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्। 
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्म समाधिना।। 4.24।।

brahmarpanam brahm havira brahmagno brahamnahutam
brahmev ten gantavyam brahmkarm samadhinaam

अर्थ:- अर्पण (करना) ब्रह्म है, हवि (हवन में प्रयोग होने वाला द्रव्य) ब्रह्म है, अग्नि ब्रह्म है, हवि देने वाला भी ब्रह्म है .. (इस प्रकार जानते हुये) जो ब्रह्म में रचा-बसा रहते हुये (मन में रखते हुये) कर्म करता है वह ब्रह्म को जाता है

Meaning:- To give is Brahman, Havi (the substance used in havan) is Brahma, Agni is brahma, The one who gives fire is also brahm, One who performs actions while living in Brahm (living in mind) goes to Brahm.


ॐ नाभ्या आसीदन्तरीक्षँ शीर्ष्णो द्यौ: समवर्तत ।
पद्भ्यां भूमिर्दिश: श्रोत्रा तथा लोकाँ अकल्पयन् ।।

om nabhya aaseedantariksh ghum sheershno dyouho samavartat |
padbhayam bhoomirdishh shrotra tatha lokaan akalpayan ||

अर्थ:- उन्हीं परम पुरुष की नाभि से अन्तरिक्षलोक, मस्तक से स्वर्ग, पैरों से पृथ्वी, कानों से दिशाएं प्रकट हुईं। इस प्रकार समस्त लोक उस पुरुष में ही कल्पित (कल्पना ) हुए।

Meaning:- Space people from the navel of the same ultimate man, heaven from head, earth from feet, directions appeared from the ears. In this way all the people were imagined by that man.


ॐ सह नाववतु।
सह नौ भुनक्तु।
सह वीर्यं करवावहै।
तेजस्विनावधीतमस्तु।
मा विद्‌विषावहै॥
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥

sahanaa vavatu
sahano bhunaktu
saha virya karavavhe
tejasvina vadhita mastu
ma vidvisha vahe
om shanti shanti shanti ||‌

अर्थ:- हम दोनों की रक्षा करें. हम दोनों का पालन पोषण करें. हम दोनों को साथ-साथ पराक्रमी बनाएं. हम दोनों का जो पढ़ा हुआ शास्त्र है, वह बढ़ता रहे. हम गुरु और शिष्य एक दूसरे से द्वेष न करें.

Meaning:- Protect both of us. Nurture both of us. Make both of us powerful together. The scripture of both of us has continued to grow. We Guru and disciple should never hate each other.



हिन्दू धरम में मंत्रो का बड़ा महत्व माना गया है। इसलिए भिन्न-भिन्न कार्यों के लिए भिन्न भिन्न मंत्रो के उच्चारण का उल्लेख मिलता है। भोजन करते समय भी शास्त्रों के अनुसार भोजन ग्रहण करने से पूर्व मंत्र उच्चारण का उल्लेख मिलता है।

भोजन से पूर्व उपरोक्त मंत्र के उच्चारण करने से मन पूरी तरह से पवित्र और शांत हो जाता है। मंत्र द्वारा शरीर में बने पवित्र भावों के कारण शरीर में पाचक रस अच्छे से बनते है जिससे भोजन ठीक प्रकार से पचता है और शरीर को उचित उर्जा भी देता है।

भोजन मंत्र Bhojan Mantra द्वारा हम अन्न देवता का आव्हान करते है व उनके द्वारा हमें दिए गये उस भोजन का धन्यवाद् भी करते है और ऐसी कामना करते है कि इस संसार में कोई भी भूखा न रहे।

यदि आप भी चाहते है कि आपके द्वारा ग्रहण किये गये भोजन से आपको सभी रसों की प्राप्ति हो व आपके द्वारा खाया गया भोजन आपके शरीर को लगे तो आज से भोजन करने से पूर्व ऊपर दिए मंत्र का उच्चारण करना शुरू कर दे।


भोजन में ध्यान देने योग्य बातें

  • भोजन कैसा भी हो देवता के तुल्य है अत: कभी भोजन की बुराई ना करे।
  • भोजन हमेशा प्रसन्न भाव से और शांति से करना चाहिए। चिंता और दुखी होकर किया गया भोजन शरीर को नही लगता है।
  • भोजन उतना ही ले जितनी भूख हो। कभी भोजन को झूठा नही छोड़े वरना लक्ष्मी नाराज हो जाती है।

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