शिखरिणी छन्द | Shikharini Chhand

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shikharini chhand

शिखरिणी | Shikharini

छन्द का नामकरण :-

  • शिखरिणी का बहुत अच्छा प्रयोग हमारे शास्त्रों में किसी षोडशी सुन्दरी युवती के लिये मिलता है। यहाँ पर छन्द का जो नाम रखा गया है वह इसी अर्थ में है।
  • क्योंकि यह छन्द सुसज्जित नववधू की तरह अलंकारों से ओत-प्रोत, कोमल भावनाओं से भरी हुई दिखाई पड़ता है सम्भवतः इसलिए इसका नाम शिखरिणी रखा गया है।
  • शिखर नुकीले होते है अर्थात् गगनचुम्बी शिखर होते है-शिखरं विद्यते अस्य इति शिखरी। यहाँ पर मत्वर्थक ‘इनि’ प्रत्यय जोड़कर शिखर शब्द से शिखरी बनेगा।
  • जैसे गुण से गुणी, धन से धनी इसी प्रकार शिखर से शिखरी बना है।
  • शिखर शब्द का अर्थ होता है पर्वत (माउन्टेन) और उसी पर्वत का स्त्रीलिंग में जब रुप बनायेगें तो शिखरिणी रुप बनेगा। शिखरिणी को आप छोटा पर्वत कह सकते है।

शिखरिणी छन्द परिचय :-

  • शिखरिणी छन्द के प्रत्येक चरण में 17 वर्ण है तथा सम्पूर्ण श्लोक में 68 अक्षर है।
  • यह अत्यष्टी छन्द का भाग है। जिस छन्द के प्रत्येक चरण में यमनसभलाग अर्थात् क्रमश यगण मगण नगण सगण भगण तथा लघु और गुरू होता है।
  • यही व्यवस्था चारों चरणों में होगी क्योंकि यह समवृत्त छन्द है।
  • इसमें 6 एवं 11 अक्षर के बाद यति होती है।

शिखरिणी छन्द का लक्षण :-

  • गंगादास कृत छन्दोमंजरी तथा केदारभट्ट कृत वृत्तरत्नाकर में शिखरिणी छन्द का लक्षण इस प्रकार दिया गया है :-

रसैरुद्रैश्छिन्‍ना यमनसभलाग: शिखरिणी।

वृत्तरत्नाकर

लक्षणार्थ:- जिस छन्द में यथाक्रम यगण, मगण, नगण, सगण, भगण, एक लघु और एक गुरु अक्षर हो तो उसे शिखरिणी छन्द कहते है।


  • पिंगल ‘छन्द सूत्र’ में इस छन्द का लक्षण इस प्रकार प्राप्त होता है।

शिखरिणी य्-मौ न्-सौ भ्-लौ ग् ऋतु रुद्राः

आचार्य पिंगल

लक्षणार्थ:- शिखरिणी छन्द में यगण, मगण, नगण, सगण, भगण, एक लघु और एक गुरु वर्ण होते हैं।


शिखरिणी छन्द का उदाहरण :-

अनाघ्रातं पुष्पं किसलयमलूनं कररुहै-
रनाविद्धं रत्नं मधु नवमनास्वादितरसम्‌।
अखण्डं पुण्यानां फलमिव च तद्रूपमनघं
न जाने भोक्तारं कमिह समुपस्थास्यति विधि:॥

(अभिज्ञानशाकुन्तलम् 1/10)

यह शकुंतला बिना सूँघा हुआ पुष्प है, नाखूनों से अनछुई कोंपल है, बेदाग रत्न है, अनजाने स्वादवाला ताज़ा शहद है, अखंड पुण्यों का निष्कलंक फल है। विधि न जाने इस (फल) का भोक्ता किसे बनाएगा (कौन बनेगा)

उदाहरण विश्लेषण :-

  • शिखरिणी छन्द में आने वाले गण एवं उनके चिन्ह :-
    यगण मगण नगण सगण भगण ल. गु.
    ।ऽऽ ऽऽऽ ।।। ।।ऽ ऽ।। ।ऽ
प्रथमपादअनाघ्रातं पुष्पंकिसलयमलूनं कररुहै
गणयगणमगणनगणसगणभगणल. गु.
चिन्ह।ऽऽऽऽऽ।।।।।ऽऽ।।।ऽ
द्वितीयपादरनाविद्धं रत्नंमधु नवमनास्वादितरसम्‌।
चिन्ह/गण।ऽऽ(यगण)ऽऽऽ(मगण)।।।(नगण)।।ऽ(सगण)ऽ।।(भगण)।ऽ(ल., गु.)
तृतीयपादअखण्डंपुण्यानांफलमिव च तद्रूपमनघं
चिन्ह/गण।ऽऽ(यगण)ऽऽऽ(मगण)।।।(नगण)।।ऽ(सगण)ऽ।।(भगण)।ऽ(ल., गु.)
चतुर्थपादन जानेभोक्तारंकमिहसमुपस्थास्यतिविधि:॥
चिन्ह/गण।ऽऽ(यगण)ऽऽऽ(मगण)।।।(नगण)।।ऽ(सगण)ऽ।।(भगण)।ऽ(ल., गु.)
  • शार्दूलविक्रीडित छन्द में आने वाले वर्ण एवं यति :-
वर्णछठे वर्ण के बाद यतिग्यारहवें वर्ण के बाद यति
17अनाघ्रातं पुष्पंकिसलयमलूनं कररुहै
17रनाविद्धं रत्नंमधु नवमनास्वादितरसम्‌।
17अखण्डं पुण्यानांफलमिव च तद्रूपमनघं
17न जाने भोक्तारंकमिह समुपस्थास्यति विधि:॥

अतः इस श्लोक के प्रत्येक चरण में क्रमशः यगण मगण नगण सगण भगण तथा लघु और गुरू हैं इस में छठे और ग्यारहवें वर्ण के बाद यति हैं अतः इस श्लोक में शिखरिणी छन्द का लक्षण घटित हो रहा है।


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शिखरिणी छन्द का प्रयोग प्रायः बहुत ही धीर-गम्भीर भावों को अभिव्यक्त करने के लिये होता है। अपने हृदय की गम्भीर भावनाएँ या दाम्पत्य प्रेम की गहरी अभिव्यक्ति या उपास्य देवता के प्रति प्रगाढ़ भक्ति का भाव या बहुत उच्चकोटि के नैतिक उपदेश का वर्णन करने के लिए कवि शिखरिणी का प्रयोग करता है।



सामान्य प्रश्न
शिखरिणी छन्द का लक्षण क्या है?

शिखरिणी छन्द का लक्षण “रसै: रुद्रैश्छिन्‍ना यमनसभलाग: शिखरिणी“।

शिखरिणी छन्द का उदाहरण क्या है?

शिखरिणी छन्द का उदाहरण :-
अनाघ्रातं पुष्पं किसलयमलूनं कररुहै-
रनाविद्धं रत्नं मधु नवमनास्वादितरसम्‌।
अखण्डं पुण्यानां फलमिव च तद्रूपमनघं
न जाने भोक्तारं कमिह समुपस्थास्यति विधि:॥

शिखरिणी छन्द के प्रत्येक चरण में कितने अक्षर होते हैं?

शिखरिणी छन्द के प्रत्येक चरण में 17 अक्षर है तथा चारों चरणों (श्लोक) में 68 अक्षर होते हैं।

शिखरिणी छन्द के प्रत्येक चरण में कौन कौन से गण आते है?

शिखरिणी छन्द के प्रत्येक चरण में क्रमश यगण मगण नगण सगण भगण तथा लघु और गुरू आते है।

शिखरिणी छन्द में कितनी बार यति आती है 

शिखरिणी छन्द में दो बार यति आती है:- प्रथम बार 6 अक्षर के बाद और अंत में 11 अक्षर के बाद।


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